अंजलि सिंह प्राइवेट कंपनी में मैनेजर थीं और 20 हजार रुपए की सैलरी मिलती थी। उनका बचपन का सपना था एयर हॉस्टेस बनने का, लेकिन घरवालों ने बाहर पढ़ने नहीं भेजा। लखनऊ यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री ली और कई जगह नौकरी की। फिर उन्होंने नौकरी छोड़कर खुद का व्यापार शुरू किया।
उनके पिता ने भी एक एनजीओ स्थापित किया था। उनका प्रोजेक्ट नेशनल जूट बोर्ड मिनिस्टरी ऑफ टेक्सटाइल से मिला था। उन्होंने बड़े नामों के साथ काम किया, लेकिन फिर नौकरी छोड़ दी। उन्होंने सरकारी बैंक से 15 लाख रुपए का ऋण लिया और अपना व्यापार शुरू किया। उनकी कंपनी का सलाना टर्नओवर 2.5 करोड़ से ऊपर है।
अंजलि का उद्यमिता और जुनून ने उन्हें सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उन्होंने अपने प्रेरणास्त्रोत को खोजते हुए खुद का कारोबार शुरू किया। उन्होंने कई लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किए। उनका कंपनी लखनऊ समेत कई अन्य जिलों में शाखाएं है। उनके साथ 25 से 30 महिलाएं भी काम करती हैं। उनके पिता के एनजीओ की स्थापना 1995 में हुई थी। उन्होंने भारतीय सेवा संस्थान एनजीओ को जूट आरटीशियन्स गिल्ड प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के नाम से पंजीकृत किया। उनके पिता के प्रोजेक्ट का संचालन भारतीय सेवा संस्थान के तहत किया गया था। उन्होंने मार्केटिंग मैनेजर के पद के लिए प्रमोशन भी प्राप्त किया। उनकी कंपनी अब करोड़ों की हो गई है। उनका कारोबारी जुनून और निरंतर प्रयास ने उन्हें साकार किया।